Wednesday 19 September 2012

स्वविवेक : एक अमूल्य निधि

किसी और ने  ग़लत काम किया किन्तु  उस पर किसी का ध्यान नहीं गया , इसका यह अर्थ नहीं होता कि वह ग़लत नहीं है । हम भी उसकी देखा - देखी करके वैसा ही काम करें और खुद को सही साबित करने के लिये पहले वाले ग़लत को साक्ष्य बनायें , यह  तर्कसंगत तो नहीं कहा जा सकता । ऐसा करने से हम न केवल पहले वाली ग़लती को छिपा रहे हैं अपितु उसका समर्थन करके उसे और भी अधिक  सशक्त बना रहे हैं । मनुष्य होने के नाते हमारे पास स्वविवेक रुपी अमूल्य निधि है , जिसका हमें सोच - विचारकर उपयोग करना चाहिए ।

एक ताज़ी और एक बासी रोटी में से हम ताज़ी रोटी का चयन किस प्रकार कर लेते हैं ! बस में बैठने पर खिड़की वाली सीट का चयन और सब्जी खरीदते समय कभी सड़े हुए आलू न उठाना ... और भी ऐसे कई उदहारण हमारे दैनिक जीवन में घटित होते हैं जो कि स्वविवेक से ही सम्बंधित हैं ।

किन्तु एक छोटे से लाभ के लिए हम सब कुछ जानते हुए भी स्वविवेक को सुप्तावस्था में भेज देते हैं और बड़ा अपराध कर बैठते हैं । हद  तो तब हो जाती है जब हम कुतर्कों का सहारा लेकर उसे जायज ठहराने की पुरजोर कोशिश करने लगते हैं ।

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