Tuesday 18 March 2014

दिन की छूत


हर सिंह के नए मकान की नींव रखी जा रही थी।  गोपाल को मकान बनाने का ठेका  पाँच लाख रुपयों में दिया गया था।  गोपाल ने इस काम के लिए गोविन्द मिस्त्री को ३०० रुपये रोज और गारा - पत्थर देने के लिए भगत राम को १२० रुपये रोज के हिसाब से काम पर रखा था।  नींव रखने के लिए सभी सामग्री जुटा  ली गयी थी।  पंडित जी के आने का इंतजार हो रहा था।  इस बीच हर सिंह गोविन्द और भगत से मकान बनाने में सावधानी बरतने की बात करने लगते हैं।  सफ़ेद धोती - कुरता पहने हुए पंडित जी पधारते हैं ।

"आओ जजमान , पूजा शुरू करें । फिर और भी कई काम निपटाने हैं । ला रे  भगता पत्थर ला । "

भगत पाँच पत्थर लाकर पंडित जी को देता है।   पंडित जी  उन  पत्थरों को पहले सादे पानी से धोते हैं । क्योंकि पत्थरों  पर भगत ने हाथ लगाया है इसलिए उन्हें  फिर गंगाजल से धोया जाता है।  भगत के पूर्वज किसी समय में गाँव में कोल्हू पर काम किया करते थे।  पंडित जी पाँचों पत्थरों पर रोली बाँधकर  उन पर टीका और अक्षत लगाते हैं और तत्पश्चात हर सिंह , गोपाल और गोविन्द को टीका लगाते हैं।

"बेटा गोपी एक तिमिल का पत्ता ला।  ये भगतु का भी तो कपाल लाल करना पड़ेगा । " - पंडित जी गोपाल से कहते हैं ।
"आपके वश में और कुछ है भी नहीं। " भगत पंडित जी की बात पर प्रतिक्रिया देता है।  सभी मध्यम आवाज की हँसी हँसते हैं ।
गोपाल एक अंजीर का पत्ता लाकर देता है।  पंडित जी थोड़ी मोली और अक्षत उस पत्ते पर रख देते हैं । गोपाल उस पत्ते को भगत के पास जमीन पर रख देता है।  भगत अपने माथे पर टीका लगाता है और उस पत्ते को मोड़कर पीछे की और फेंक देता है।  (सभी के माथे पर एक ही रंग का टीका और अक्षत लगा है।  दुनिया का सबसे बड़ा विद्वान भी उनके माथे देखकर उनकी जात नहीं बता सकता। )

पंडित जी मन्त्रों के साथ पत्थरों की पूजा करते हैं , हर सिंह , गोपाल और गोविन्द भी हाथ जोड़कर पूजा में शामिल होते हैं।  भगत पास पड़ी मिट्टी के ढेर पर बैठकर बीड़ी फूँकता है।  गोपाल उसे एक तसला गारा बनाने को कहता है।  पूजा के बाद गोविन्द चार पत्थरों को नींव के चार कोनों में चिन देता है , पाँचवाँ पत्थर पूजा वाले स्थान पर रख देते हैं जहाँ प्रत्येक शाम को हर सिंह की पत्नी दीया जलाने आएगी।

"जजमान ! चाय - पानी का बंदोबस्त नहीं है क्या ? ये पूजा तो सूखी - सूखी ही हुई , कुछ गले की तरावट का जुगाड़ करो। "
हर सिंह भगत को पाँच चाय का ऑर्डर देने को कहते हैं।  भगत समीप की दुकान पर पाँच चाय के लिए बोल के आता है।
 "दुकान की चाय में ही टरका दोगे !"
"ऐसी बात नहीं है पंडित जी , शाम को घर आइये , आपको घर की चाय भी पिला देंगे। "

पंडित जी सभी को प्रसाद वितरण करते हैं।  गोपाल भगत के हाथों से एक फीट ऊपर से ही उसके हाथ में प्रसाद छोड़ देता है।  हर सिंह पंडित जी के साथ दीन - दुनिया की बातों में व्यस्त हो जाते हैं।
एक बच्चा छींके में चाय लेकर आता है और भगत के हाथ में थमा देता है - "ये लो आपकी चाय। " भगत फुर्ती से हाथ हटाते  हुए उसे आगे बढ़ने को कहता है किन्तु पंडित जी की नजरों से नहीं बच पाता है।
"दूर रख - दूर रख।  अब ये चाय नहीं गौरक्त है।  एक चाय इस अधर्मी को दे और बाक़ी मिट्टी  में फेंक दे। "
पंडित जी के हाव- भाव और बातों को सुनकर अन्य लोग भी अनुमान लगा लेते हैं कि चाय के छींके को भगत ने छू लिया है। वे भी पंडित जी का पक्ष लेकर चाय पीने से मना कर देते हैं।

"पी लो गुरूजी , अगर उलटी हो जाय तो आपकी जूती और मेरा सिर। "
"इस कलियुग में अब तेरे हाथ की चाय पीनी ही बाकी रह गयी है ! सारा धर्म - कर्म नष्ट हो जायेगा।  तू तो जायेगा ही और अपने साथ हमें भी नरक में ले जायेगा। "
"ओ हो ! आपने तो स्वर्ग में पहले से ही बुकिंग करवायी है ना !! क्या गारंटी है आपके स्वर्ग में जाने की ?"
"मुझे कीचड़ में पत्थर फेंकने का शौक नहीं है , तेरे मुँह लग के अपने  ही समय की  बरबादी है। "
" फेंकना भी मत।  सफ़ेद कपड़ों पर दाग दिखते भी ज्यादा हैं और छूटते भी नहीं। "
"बस - बस । आज बख्शा।  आगे से ध्यान रखना। " (पंडित जी को मुद्दा ख़त्म करने में ही भलाई सूझी। )

 नींव रखने के उपलक्ष में गोपाल हर सिंह से शराब की माँग करता है।  गोविन्द और भगत भी उसका समर्थन करते हैं ।
"चाय तो ये भगत की छाती में गयी।  हम तो सूखे ही रहे।  सफ़ेद पानी न सही लाल पानी ही पिला दो। पंडित जी के कहने पर तो चाय मंगवाई थी , उनके गले की तरावट भी बाकी रह गयी । " गोपाल ने कहा।
"ना - ना , मैं तो शुद्ध सात्विक खान - पान वाला आदमी हूँ , ये सब मांस - मदिरा का सेवन नहीं करता। " पंडित जी ने बिना माँगे ही अपना स्पष्टीकरण दिया।
"हाथी के दो तरह के दाँत होते हैं। " भगत ने मौके का फायदा उठाते हुए कटाक्ष किया।  पंडित जी के अलावा सभी हँस पड़ते हैं।
हर सिंह गोपाल को ३०० रुपये देते हैं और तीनों के लिए खुद ही शराब खरीदने को कहते हैं।  पंडित जी शाम को चाय और दक्षिणा के लिए घर आने की बात कहकर विदा लेते हैं।  ठेकेदार, मिस्त्री और हेल्पर भी  प्रस्थान करते हैं।
शाम को गोपाल , गोविन्द और भगत शराब पीने के लिए गोपाल के घर जमा होते हैं। चटाई पर तीन गिलास और शराब की बोतल के साथ एक थाली में भुना हुआ मांस परोसा है।  तीनों बातें करते हुए शराब के पैग लगाते हैं।
गोपाल - "यार भगत आज तेरे चक्कर में चाय गंवानी पड़ी। "
भगत  - "हाँ यार उस बामण की नजर अचानक पड़ गयी । उस चाय वाले को भी आकर मुझसे ही टकराना था !!"
गोविन्द - " उसकी क्या गलती यार !! ऑर्डर देने तू गया था तो उसने चाय तुझे ही थमा दी।  वो तेरी जात थोड़े ही जानता है !!"
गोपाल - " वो तो पंडित ने रोड़ा कर दिया वरना हमने अकेले में तुझसे कभी परहेज किया है क्या ? और फिर हरुआ भी साथ में था।  ला एक पैग और बना। "
गोविन्द पर शराब का असर होने लगता  है और उसकी आवाज लड़खड़ाने लगती  है - " तू तो अपना भ्भभाई है यारररर्  ----- भगत भाई , है ना !!"
भगत - " मैं जानता हूँ यार।  तुमने देखा क्या मैंने कैसे बामण  की बोलती बंद कर दी थी। अब सफ़ेद झगुला पहनने से पहले कम से कम दस बार तो सोचेगा ही सोचेगा। आज रात तो उसको स्वर्ग - नरक ही दिखायी देंगे सपने में भी। "तीनों ही जोर का ठहाका लगाते हैं और बोतल को पूरी तरह हवा से भरकर पार्टी ख़त्म करते हैं।  गोपाल अपने दोस्तों को विदा करता है और लुढक जाता है।

वहीँ दूसरी ओर पंडित जी भी हर सिंह के घर पहुँच जाते हैं।  हर सिंह उनका स्वागत करते हैं और बैठक कक्ष में बिठाते हैं।  यहाँ भी दिन की चाय की चर्चा शुरू हो जाती है।
" देखी आपने जजमान आज उस भगतुआ की करतूत ! मेरा तो धर्म ही भ्रष्ट हो जाता।  वो तो अच्छा हुआ कि मैंने उसे देख लिया। "
"अब जाने भी दीजिये पंडित जी , आजकल कौन मानता है इस ऊँच - नीच को !"
"सो तो है लेकिन एक से  दो मुँह होते ही बात फैलते देर नहीं लगती । आज धोखे से उसके हाथ की चाय पी लेता तो कल चार लोगों के सामने मुझे अपने घर खाने पर बुला लेता। ये चाय बहुत भारी पड़ जाती। ये ओछे लोग ऐसा ही मौका तलाशते रहते हैं। जजमानचारी ही तो अपनी खेती है। "
हर सिंह पंडित जी को एक पैग शराब ऑफर करते हैं।
"आपके साथ तो चल जाता है , वो गोपाल वहीँ टाँग खींचने लगा था।  "
"मैं तो प्लॉट पर एक बोतल लेकर गया था आपके लिए।  जब गोपाल ने माँगना शुरू किया तो मैं आपको भी नहीं दे पाया। "
"बिल्कुल ठीक किया आपने । इसीलिए तो दक्षिणा लेने घर आना पड़ा। "
दोनों ही बड़े शान से शराब का आनंद लेते हैं और बोतल खाली होने पर पंडित जी अपनी दक्षिणा लेकर विदा हो लेते हैं।

~ प्रवेश ~



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